निर्जला एकादशी 31 मई, बुधवार को है।
निर्जला एकादशी, हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है जो हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इसे ‘निर्जला व्रत’ भी कहा जाता है, जिसका मतलब होता है निर्जल यानी बिना जल के। यह व्रत एकादशी व्रतों में सबसे शक्तिशाली माना जाता है और इसे सम्पूर्ण उत्तर भारत में धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। शास्त्रों में निर्जला एकादशी व्रत को साल की सभी २४ एकादशियो में से सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और अर्चना की जाती है। इस व्रत में व्रती व्यक्ति अपूर्ण उपवास रखते हैं, यानी वह पूरे दिन भोजन या पानी नहीं करते हैं।
इस पवित्र दिन पर निर्जला एकादशी कथा का पाठ भी किया जाता है। यह कथा विष्णु भक्तों को धर्म, नैतिकता और आध्यात्मिकता के महत्वपूर्ण संदेशों के साथ प्रदान करती है। यह कथा एक उदाहरण है कि कैसे आध्यात्मिक साधना, विश्वास, और भक्ति के माध्यम से हम अपने जीवन को पूर्णता की ओर ले जा सकते हैं।
निर्जला एकादशी व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी का व्रत है।निर्जला एकादशी का यह व्रत 30 मई 2023 को दोपहर 01 बजकर 07 मिनट से शुरू होगा और 31 मई को दोपहर 01 बजकर 45 मिनट पर समाप्त होगा। उदया तिथि के अनुसार, इस वर्ष निर्जला एकादशी 31 मई 2023 दिन बुधवार को मनाई जाएगी।
निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी का व्रत बिना जल ग्रहण किए और उपवास रखकर किया जाता है, जिसके कारण इसे कठिन तप और साधना का महत्त्व रखा जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, पांच पाण्डवों में भीमसेन ने इस व्रत का पालन किया था और वे वैकुंठ में गए थे, इसलिए यह भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जनि जाती है।
निर्जला एकादशी का व्रत करने से साल भर की 25 एकादशियों के फल के साथ अधिकमास की दो एकादशियां भी मिलती हैं। जहाँ साल भर की अन्य एकादशी व्रतों में आहार संयम का महत्त्व होता है, वहीं निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ ही जल का संयम भी ज़रूरी है। इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है, यानी निर्जल रहकर व्रत का पालन किया जाता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। निर्जला एकादशी व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है।
निर्जला एकादशी व्रत कथा
- प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार, श्री वेदव्यास जी ने एक बार पांडवों को चार पुरुषार्थों – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के – साधने वाले एकादशी व्रत के संकल्प को समर्पित किया।
- युधिष्ठिर ने कहा, “हे जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी के बारे में बताइए।” तब श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, “हे राजन! इस विषय में ज्ञानी सत्यवती नन्दन व्यासजी ही विशेषज्ञ हैं।” तब वेदव्यास ने कहा कि दोनों पक्षों (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) की एकादशी में अन्न ग्रहण करना अनुचित है। द्वादशी के दिन स्नान आदि के बाद पहले ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अंत में स्वयं भोजन करना चाहिए।
- इस जवाब से प्रेरित होकर भीमसेन बोले कि वे और उनकी माता सभी भाई व्रत रखने की इच्छा रखते हैं, लेकिन उनके लिए व्रत रखना कठिन है। वे तो दान, पाठ, पूजा, स्नान आदि कर सकते हैं, परंतु व्रत के दौरान भूखा नहीं रह सकते। इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है? तब वेदव्यासजी ने कहा कि वे नर्क और स्वर्ग लोक के बारे में जानते हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक माह में आने वाली एकादशी के दिन अन्न ग्रहण कर सकते हैं।
- भीमसेन ने कहा, “मुझे सचमुच भूख लगती है और मैं अधिक भोजन करने के बाद ही शांत होता हूं। बिना भोजन किए व्रत या उपवास करना मुझे मुश्किल लगता है। मैं वर्ष में एक ही दिन व्रत रख सकता हूं, ताकि मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो और मैं कल्याण का भागी बन सकूं। कृपया ऐसा एक व्रत बताएं।”
- तब वेदव्यासजी ने ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी निर्जला एकादशी के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि इस दिन व्रत रखने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस दिन आचमन करने और स्नान करने की अनुमति होती है, लेकिन व्रत के दौरान भोजन और पानी नहीं पीना चाहिए। इस प्रकार, प्रत्येक माह की एकादशी के दिन अन्न ग्रहण करने से 1 साल की सभी एकादशियों का पूर्ण फल प्राप्त हो सकता है।
निर्जला एकादशी व्रत महात्म्य के अनुसार, यह व्रत भक्ति और संतोष को बढ़ाता है, पापों को नष्ट करता है और मनुष्य को धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति में सहायता प्रदान करता है। यह व्रत विशेष रूप से मान्यता का लाभ प्राप्त करने, अधिक पुण्य कमाने और वैकुंठ में भगवान की कृपा प्राप्त करने का एक अवसर प्रदान करता है।
निर्जला एकादशी व्रत हिन्दू समाज में आदर्श व्रतों में से एक माना जाता है, जो शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को सुधारकर स्वास्थ्य और सामर्थ्य को बढ़ाता है। यह एक अवसर है जब हम अपने आप को भगवान की आराधना, ध्यान और सेवा में समर्पित कर सकते हैं और अपनी आध्यात्मिक यात्रा को आगे बढ़ा सकते हैं।